Tuesday, July 11, 2006
चोट खा ली पहले ही मुहब्बत मे इतनी
के, जुर्रत नही ये खता करने की दोबारा
जान ली एक पल मे हम ने हैसियत अपनी
लगा सदमा दिल को कुछ ऐसा करारा
जन्नत की खुशियॉ तो नही मांगी थी
मांगा था हम ने बस एक साथ तुम्हारा
अपने ही मुकद्दर को कोस रहे है अब
बिना लकीरों के बन गया नसीब हमारा
लढते थे नैन जिससे कभी महफिल मे
तरस गये है पाने को उसका एक इशारा
पिलाया था कभी जिसने जाम अपनी आखों से
उस जालिम ने ही आज ये नशा है उतारा
बैठे रहे उसकी याद मे एक आस लिये
ना आए पास हमारे, ना ही हमे पुकारा
हालत बना गए कुछ ऐसी इस आशिक की
कहने लगी है दुनिया इसे अब बेचारा
हुआ करती थी कभी रातें जिसकी जवां
आज फैला है दिन मे भी कैसा अंधियारा
चलते थे जो कभी हमराह बनके हम
आज मिलता हुं मै उन गलियों मे मारा मारा
के, जुर्रत नही ये खता करने की दोबारा
जान ली एक पल मे हम ने हैसियत अपनी
लगा सदमा दिल को कुछ ऐसा करारा
जन्नत की खुशियॉ तो नही मांगी थी
मांगा था हम ने बस एक साथ तुम्हारा
अपने ही मुकद्दर को कोस रहे है अब
बिना लकीरों के बन गया नसीब हमारा
लढते थे नैन जिससे कभी महफिल मे
तरस गये है पाने को उसका एक इशारा
पिलाया था कभी जिसने जाम अपनी आखों से
उस जालिम ने ही आज ये नशा है उतारा
बैठे रहे उसकी याद मे एक आस लिये
ना आए पास हमारे, ना ही हमे पुकारा
हालत बना गए कुछ ऐसी इस आशिक की
कहने लगी है दुनिया इसे अब बेचारा
हुआ करती थी कभी रातें जिसकी जवां
आज फैला है दिन मे भी कैसा अंधियारा
चलते थे जो कभी हमराह बनके हम
आज मिलता हुं मै उन गलियों मे मारा मारा
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