Saturday, July 15, 2006

दिल की बात ना सुन ऐ मेरे हमसफर
दिमाग को फिर शायद पछताना पड़ेंगा
ये तो भाग जाएगा दो नैना मिला के
हाल-ए-दिल जबान को ही जताना पड़ेंगा

मजा आने लगेंगा इतना इस बिमारी मे
पागलपन मे खुद को सताना पड़ेंगा
गर लग जाए बेवफाई का एक दाग
खून के कतरे से उसे हटाना पड़ेंगा

मिले थे हसिन लम्हे जितने मुलाकात के
किश्तों किश्तों मे उन्हें लौटाना पड़ेंगा
लूट जाओगे मुहब्बत के चक्कर मे, फिर
किस्मत के दरवाजों को खटखटाना पड़ेंगा

बुलाया करेंगे कई लोग दीवाना तुम्हें
हर गली से रोज एक नया ताना पड़ेंगा
इतना सताएगा ये जमाना तुम्हें, के
अकेले मे भी फिर झटपटाना पड़ेंगा

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