Thursday, July 20, 2006
पास नही रहते हो तुम जिस पल
लगता है गुजर गये कितने जमानें
दिल वही सुकून पाने के लिये फिर
तलाशता रहता है कैसे कैसे बहाने
मिलते हो जो रात की तनहाई मे
खुश हो के दिल लगता है इतरानें
अब आबाद करो या करो बरबाद
रख दिया खुद को रुख-ए-निशाने
मान भी लो बात अपने दिल की
ना जाओ इन शोलों को सुलगानें
जल जाओगे तडप की इस आग मे
देखना ना आएगा कोई फिर बचाने
लगता है गुजर गये कितने जमानें
दिल वही सुकून पाने के लिये फिर
तलाशता रहता है कैसे कैसे बहाने
मिलते हो जो रात की तनहाई मे
खुश हो के दिल लगता है इतरानें
अब आबाद करो या करो बरबाद
रख दिया खुद को रुख-ए-निशाने
मान भी लो बात अपने दिल की
ना जाओ इन शोलों को सुलगानें
जल जाओगे तडप की इस आग मे
देखना ना आएगा कोई फिर बचाने
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