Thursday, July 27, 2006

तू ठुकरा दे लाख मुझे ऐ जान-ऐ-जाना
आएँगा लौट के दीवाना तेरे ही पहलू मे
चुका नही पाऊंगा एहसान तेरे इनायतों का
चाहे कितने ही दर्द क्यों ना सहलू मै

दिया है जमाने ने जो दाग बेखुदी का
तुम ही बताओ कैसे उसे धो डालु मै
बीन पिये झूमने की आदत सी हो गई है
नशे मे फिर कैसे खुद को सँभालूँ मै

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