Tuesday, July 11, 2006

रूदाद ये मेरे दिल की लब्जों मे होगी ना कभी बयां
हिज्र की उन लम्बी रातों का कही ना होगा कोई निशां
तेरे महफिल से निकले थे हम ना-उम्मीद हो के कभी
फिक्र करनी है हमें बस महशर की, भूल के सारा जहां
रूदाद: story
हिज्र: separation
महशर: day of judgment

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